MuMMaa..


हर मासूम बच्चे की तरह,
एक बेटी और बहन के रूप में
वो भी थी, अपने पापा की लाडली
और माँ की आँखों का तारा।
उम्मीद भरी आँखों में..
लाखों सपने लिए,
उसने भी की थी अपनी ज़िन्दगी की शुरुआत।
छोटी छोटी खुशियों और गमों के बीच..
पूरे किये उसने कुछ सपने और कुछ रह गए अधूरे..
इसी तरह से सीखा था उसने भी
ज़िन्दगी में आगे बढ़ना।
दुनिया में बनायी अपनी पहचान
और रोशन किया
अपने माता-पिता का नाम।
लेकिन एक दिन आया ऐसा..
जब उसे छोड़ना पड़ा अपना परिवार
और अपने ही लोग
क्योंकि अपनानी थी एक नयी दुनिया
नया परिवार और नए लोग।
मिला उसे अब एक बहु और एक पत्नी का दर्जा..
देखने लगी वो खुद को अपनी माँ की ही छवि की तरह
अपनी माँ से मिली सीख और प्यार से
स्वीकार किया सब कुछ
हर फ़र्ज़ को निभाने के लिए।
किया हर तकलीफ और मुश्किल का सामना
सलीके से समेटे रखा पूरे परिवार को।
इसी बीच उसने मुझे जन्म दिया।
आखिरकार, मिल गया उसे
दुनिया का सबसे बड़ा दर्जा..
बन गयी वो मेरी "माँ"..
भूल कर अपने सभी दर्द
मुझ में पा ली उसने एक नयी दुनिया
मेरी एक किलकारी सुनते ही
बुन डाले अनगिनत सपने
वादा किया मुझसे और अपने आप से
की देगी वो मुझे दुनिया की हर ख़ुशी
हर कदम पर देगी वो मेरा ही साथ।
मेरे साथ उसने भी की एक नयी ज़िन्दगी की शुरुआत..
नाज़ों से मुझे पालना शुरू किया
अपनी नींद गवां कर, मुझे सुलाया..
धुप में जल कर, मुझे अपने आँचल की छाँव दी..
खुद भूखा रह कर मेरा पेट भरा..
अपने अधूरे सपनों को,
मुझ में पूरा करने की उम्मीद लगाई..
दुनिया की हर आंच से बचाया..
मुझे अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाया..
हर मुश्किल से लड़ने का हौसला दिया..
मेरी खुशियों में खुद को निस्वार्थ भाव से शामिल किया।
बना दिया उसने मुझे
एक क़ाबिल इंसान।
"हाँ, मैं कहता/कहती हूँ
पूरी दुनिया से..
मैं भी अपनी माँ को उतना ही प्यार करता/करती हूँ
जितना माँ ने मुझसे किया.."
लेकिन...
क्यों, भूल जाती हूँ हर बार कि,
जितनी ज़रुरत मुझे उसकी है,
उससे कहीं ज्यादा उसे भी मेरी ज़रुरत है।
जिसने मुझे सहारा दे कर चलना सिखाया..
क्यों मैं उसे सहारा नहीं दे सकता/सकती।
जिसने मुझे बोलना सिखाया..
क्यों मैं उसकी कही बातें समझना नहीं चाहता/चाहती।
एक ज़माने में जब वो अपने सब काम छोड़ कर सिर्फ मेरे साथ रहती थी..
क्यों मैं आज उस के साथ दो पल भी नहीं बिता सकता/सकती।
जिसने अकेले चार बच्चों को सम्भाल लिया
क्यों आज वही चार बच्चे एक माँ को नहीं सम्भाल सकते।
जो दुनिया कि भीड़ में मेरी नादानियों को नज़रअंदाज़ कर देती थी..
क्यों आज उसी माँ कि मौजूदगी मुझे चार लोगों के बीच अखरती है।
आखिर क्यों...!
वो मेरे ज़माने को नहीं समझती, क्या सिर्फ इसीलिए मैंने अपनी माँ को अपना समझना छोड़ दिया।..?
चाहे मैं कितना/कितनी ही क्यों न बदल जाऊं..
लेकिन अपनी माँ के लिए हमेशा उसका/उसकी बेटा/बेटी ही रहूंगा/रहूंगी।
और ज़माना चाहे कितना भी क्यों न बदल जाये
माँ हमेशा माँ ही रहती है।
उसका प्यार और उसकी ममता कभी कम नहीं होती।
माँ हमेशा मुझसे कहती है कि,
"एक दिन तुम्हे भी एहसास होगा सही गलत का,जब मैं तुमसे दूर चली जाउंगी"
और माँ सही कहती हैं हम सभी को याद आएगा सब कुछ एक दिन
और फिर एहसास होगा उसकी ममता का
"वो मेरी तबियत खराब हो जाने पर माँ का देर रात तक जागना...
हर रोज़ दरवाज़े पर खड़े हो कर मेरे घर आने का इंतज़ार करना..
मुझे चोट लग जाने पर मुझसे ज्यादा उसे तकलीफ होना..
अपने आंसुओं को छुपा कर मेरी आँखों में आँसू न आने देना..
मेरे देर रात तक न सोने पर उसका परेशन होना...
ज्यादा मोबाइल चलाने पर उसका नाराज़ हो जाना..
घर पहुँचने में देर हो जाने पर उसका बार बार फ़ोन कर के फ़िक्र करना..
सर्दियों कि रात में मेरे पढ़ते पढ़ते सो जाने पर मुझे कम्बल उढ़ा देना..
घर आते ही मेरे लिए खाना तैयार रखना..
आलिशान बिस्तर पर सोते हुए याद आएगा, मेरा उसकी गोद में सर रख कर सो जाना..
5  सितारा होटल में खाना खाते वक़्त याद आएगा, माँ के हाथ का खाना.."
और इन सब यादों के बीच निकलेगी दिल से एक ही आवाज़..


"माँ, मेरा साथ कभी ना छोड़ना। तुम नहीं तो कुछ नहीं। तुम्हारे बिना मेरा कोई वजूद नहीं!"

दोस्तों, चाहे हम अपनी माँ के लिए प्यार न जताते हो, लेकिन हम सभी अपनी माँ से बहुत प्यार करते है।
ज़िन्दगी के सफर में माँ ने हमसे ज्यादा रिश्ते और फ़र्ज़ निभाए हैं।एक माँ सिर्फ अपने बच्चों कि ही नहीं बल्कि पूरे परिवार की माँ का रूप है अब ये हमारा फ़र्ज़ है कि हम भी अपनी माँ को उतना ही खुश रखे, जितना उन्होंने हमें रखा है।


HAPPY MOTHER'S DAY TO EVERY MOTHER


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